भैरव बाबा: महामाया देवी के दर्शन से पहले की जाती है दर्शन

what is history of mahamaya temple ratanpurमहामाया-मंदिर-रतनपुर का इतिहास

माँ महामाया देवी: भैरव बाबा के दर्शन के बिना अधूरा है : 11वीं शताब्दी में माँ महामाया देवी मंदिर का निर्माण कल्चुरी शासन काल में राजा रत्नदेव प्रथम ने अपनी राजधानी रतनपुर (मणिपुर) में कोसलेश्वरी  देवी के रूप में स्थापित किया गया था।जो पुराने दक्षिण कोसल क्षेत्र (वर्तमान छत्तीसगढ़ राज्य) की अधिष्ठात्री (कुलदेवी) देवी हैं। 

रतनपुर शहर आदिशक्ति मां महामाया देवी की पवित्र पौराणिक नगरी है तथा  इसका इतिहास प्राचीन और गौरवशाली रहा है।

माना जाता है की जो भी भक्त माता महामाया का दर्शन करने आते हैं, वह सबसे पहले माँ महामाया देवी मंदिर के कुछ दूर पहले स्थित भैरव बाबा के मंदिर के दर्शन करते हैं। 

भैरव बाबा की यह प्रतिमा प्राचीन है और इसकी ऊंचाई (वर्तमान मे लगभग 10 फिट) दिन प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है। भैरव बाबा के दर्शन के बिना माँ महामाया देवी के दर्शन से कि अधूरा माना जाता है। 

भैरव बाबा
भैरव बाबा

पौराणिक मान्यता के अनुसार माँ महामाया देवी रतनपुर जहा माता सती का दाहिना स्कन्ध गिरा था,  माता सती का ही एक रूप है जिसे भगवान शिव ने स्वयं आविर्भूत होकर उसे कौमारी शक्ति पीठ का नाम दिया था।

माँ महामाया देवी को 51 शक्तिपीठों में शामिल किया गया है। भैरव बाबा जो स्वयं भगवान शिव के काल भैरव का रूप है इसिलए माँ महामाया देवी के दर्शन, भैरव बाबा के दर्शन के बिना अधूरा माना जाता है। 

नवरात्रि मे आते है लाखों भक्त

छ.ग. कि राजधानी रायपुर से महज 142 किलोमीटर दूर  तथा बिलासपुर से 25 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैं। माँ महामाया मंदिर रतनपुर  मां दुर्गा, महालक्ष्मी को समर्पित प्रसिद्ध मंदिर  हैं। गर्भगृह में आदिशक्ति मां महामाया की साढ़े 3 फीट ऊंची प्रस्तर की भव्य प्रतिमा स्थापित है।

नवरात्रि में मां महामाया के दर्शन करने के लिए लाखों भक्त यहां आते हैं भक्त सबसे पहले महामाया मंदिर के कुछ दूर पहले स्थित भैरव बाबा के मंदिर पर रुककर दर्शन करते हैं।

माना जाता है कि नवरात्रि में यहां की गई पूजा निष्फल नहीं जाती है। यह मंदिर  देवी महामाया शक्ति के रूप में यहां प्रमाणित तौर पर है। 

माता सती का गिरा था दाहिना स्कन्ध

पौराणिक मान्यता के अनुसार 51 शक्तिपीठ बताए गए हैं, जो अत्यंत पावन तीर्थ कहलाये। ये तीर्थ पूरे भारतीय उपमहाद्वीप पर फैले हुए हैं। उनमें से 9 विदेश (श्रीलंका, बांग्लादेश, नेपाल, तिब्बत, भूटान और पाकिस्तान) में तथा भारत में कुल 42 शक्तिपीठ स्थापित हैं।

माता सती की मृत्यु से व्यथित भगवान शिव उनके मृत शरीर को लेकर तांडव करते हुए ब्रह्मांड में भटकते रहे। इस समय माता के अंग जहां-जहां गिरे, वहीं शक्तिपीठ बन गए। 

महामाया मंदिर रतनपुर में माता का दाहिना स्कंध गिरा था। भगवान शिव ने स्वयं आविर्भूत होकर उसे कौमारी शक्ति पीठ का नाम दिया था। इसीलिए इस स्थल को माता के 51 शक्तिपीठों में शामिल किया गया।

माँ महामाया देवी पर एक किंवदंती यह भी है

कलचुरी वंश राजा रत्न देव प्रथम ने अपना राजधानी तुम्मान से रत्नपुर स्थानांतरित की थी। इस पर एक किंवदंती है। एक बार रत्नदेव शिकार करते हुए शाम के समय मणिपुर पहुंचे।रात में तुम्मान वापस जाने के बजाय, महामाया मंदिर के पास एक पेड़ के नीचे रात बिताने का फैसला किया। 

आधी रात को तेज रोशनी से उसकी नींद टूट गई। वह उठे और देखे कि देवी महामाया का दरबार चल रहा है जहाँ वह अपने सेवकों के साथ उपस्थित था । वह काफी आश्चर्यचकित हुआ लेकिन अगली सुबह तुम्मान वापस चला गया। 

बाद में रात में उन्हें एक सपना आया जहां देवी ने उन्हें अपनी राजधानी मणिपुर स्थानांतरित करने के लिए कहा, जिसके परिणामस्वरूप उनकी और प्रसिद्धि होगी। 

इसी के फलस्वरुप राजा रत्न देव अपनी राजधानी तुम्मान से मणिपुर स्थानांतरित की और अपने नाम पर से रत्नपुर (रतनपुर) रखा। 1045 ई. में महामाया मंदिर निर्माण कराया जो कलचुरी वंश की कुलदेवी देवी हैं।

माँ महामाया देवी

माँ महामाया देवी का इतिहास

रतनपुर के अभिलेख से ज्ञात होता है की 12-13वीं शताब्दी में रत्नदेव प्रथम कलचुरी वंश  शासनकाल  में प्राचीन ग्राम मणिपुर को रतनपुर नामक नगर के रूप में बसाया फिर उसनें अपनी राजधानी तुम्मान से रतनपुर स्थान्तरित किया उसनें यहाँ अनेक मंदिर और तालाबों निर्माण कराया।

विक्रम संवत् (1552) के अनुसार रत्नदेव प्रथम ने माँ काली, देवी दुर्गा को समर्पित कोसलेश्वरी देवी (महामाया मंदिर) का निर्माण करवाया था। जो दक्षिण कोसल क्षेत्र (वर्तमान छत्तीसगढ़ राज्य) की अधिष्ठात्री देवी हैं। 

महामाया मंदिर एक विशाल पानी की टंकी के बगल में उत्तर की ओर मुख करके मंदिर का मंडप नागर शैली में बना है, यह 16 स्तंभों पर टिका है।लगभग 1400 साल पुराना मां महामाया मंदिर स्थापत्य कला बेजोड़ उदाहरण है। मंदिर का मंडप नागर शैली में बना है, यह 16 स्तंभों पर टिका है। 

मूल रूप से मंदिर तीन देवियों अर्थात महाकाली,देवी महालक्ष्मी और देवी महासरस्वती के लिए था। बाद में परिसर के भीतर शिव और हनुमान जी के मंदिर भी बनाया गया है। 

नागर शैली में बना अन्य उदाहरण- श्री राम मंदिर(अयोध्या),जगन्नाथ मंदिर (पुरी),खजुराहो मंदिर (MP)

रतनपुर तालाबों की नगरी

रतनपुर में लगभग 365 तालाब मौजूद हैं। जिनमे से अधिकतम तालाब पौराणिक समय से ही अस्तित्व में हैं। इतिहास के अनुसार 11वीं शताब्दी में राजा रत्नदेव प्रथम ने रतनपुर (मणिपुर) को अपनी राजधानी के साथ ही अनेक तालाबों निर्माण भी किया था।

बताया जाता है कि यह सभी तालाब एक दूसरे से जुड़े हुए हैं, क्योंकि इन तालाबों का निर्माण ऐसे हुआ है कि एक से दूसरा तालाब पुनर्भरण होते रहते हैं। 

इतनी बड़ी संख्या में छत्तीसगढ़ के किसी नगर में शायद ही तालाब हो। इन्हीं  वजह से रतनपुर मंदिरों  के साथ ही तालाबों का नगर कहा जाता है।

माँ महामाया देवी मंदिर कैसे पहुंचे?

1.सड़क मार्ग से-

रायपुर से 141 किमी की दूरी पर स्थित रतनपुर by road बड़ी आसनी से 2.30 घंटे में पहुँच सकते हैं balajitravelandtour  रायपुर से बहुत ही सस्ती और अनुभवी ड्राइवर के साथ कार (5, 7, 10,12 seater) उपलब्ध करता है। अधिक जानकारी के लिए 

2.रेल मार्ग से-

बिलासपुर रेलवे स्टेशन, जो कि रतनपुर से 25 किमी की दूरी पर है। रायपुर रेलवे स्टेशन से 142.3  किमी की दूरी पर है। यह रेल जोन भी है। सभी रूट के लिए गाड़ी मिलेगी। रेल मार्ग से भी बड़ी आसनी से 2.30 घंटे में पहुँच सकते हैं

3.वायु मार्ग से -

यह स्वामी विवेकानंद एयरपोर्ट रायपुर, बिलासा देवी केंवट एयरपोर्ट 126 किमी की दूरी पर स्थित है। बिलासपुर से 25 किमी की दूरी पर है, रतनपुर के लिए  taxi और हर एक घंटे में बस सेवा निरंतर उपलब्ध है। 

Call Now Button