
राजीव लोचन मंदिर- भगवान विष्णु को समर्पित यह मंदिर 8वीं शताब्दी ई. मे नल वंश के शासक विलासतुंग द्वारा महानदी के तट पर राजिम मे बनाया गया था। राजीव लोचन मंदिर मे भगवान विष्णु के तीन रूपों के दर्शन होते हैं – सुबह में भगवान के बाल्य रुप, दोपहर में युवा अवस्था और रात में वृद्धावस्था के दर्शन होते हैं। राजिम 3 नदियों महानदी, सोडूर और पैरी के संगम (जिसे त्रिवेणी कहते है) पर बसा है। जिसके एक तट पर भगवान विष्णु के ही अवतार राजीव लोचन मंदिर है और दूसरे तट पर सप्तऋषियों में से एक लोमश ऋषि का आश्रम तथा त्रिवेणी संगम के बींचो बीच कुलेश्वर महादेव का मंदिर है।
माना जाता है कि राजीव लोचन मंदिर के चारों कोणों मे चार धाम स्थित है। यहां मंदिर के चोरों कोणों मे नरसिंह अवतार, वराह अवतार, वामन अवतार और बद्री नारायण भगवान का मंदिर प्रस्थापित है। छत्तीसगढ़ के लोगों की मान्यता है कि राजीव लोचन मंदिर मे चारों धाम समाए हुए है, भगवान विष्णु के अवतार राजीव लोचन मंदिर के दर्शन से चारों धामों का दर्शन एक साथ किया जा सकता है। कहा जाता है कि राजीव लोचन मंदिर के दर्शन के बिना जगन्नाथ पूरी यात्रा अधूरी है।
यहाँ रहने वाले लोगों और मंदिर के पुजारियों का यह दावा है की यह राजीव लोचन मंदिर चमत्कारी है तथा यहा स्वयं भगवान विष्णु हर रात्रि विश्राम करने आते है जिसका पक्का प्रमाण भी मिलता है।
राजीव लोचन मंदिर: क्या सच मे भगवान विष्णु आते है विश्राम के लिए

1.राजीव लोचन मंदिर का इतिहास
राजिम अभिलेख के अनुसार राजीव लोचन मंदिर का निर्माण 8 वीं शताब्दी मे नल वंश के शासक विलसतुंग विष्णु ने कमल क्षेत्र मे (वर्तमान मे राजिम ) बनवाया था। बाद मे इसका जीर्णोधार रत्नपुर सामंत सेनापति जगतपाल ने करवाया था। नागर प्रकार के प्राचीन मंदिरों में महामण्डप सामान्यत: वर्गाकार बनाये जाते थे अतः राजीव लोचन का यह मंदिर चतुर्थाकार में बनाया गया है। मंदिर में कुल 12 स्तंभ बनाए गए है, गर्भगृह भगवान काले पत्थर की बनी विष्णु की चतुर्भुजी मूर्ति है जिसके हाथों में शंक, चक्र, गदा और पदम है।
लोगों का मानना है कि भगवान राजीव लोचन मंदिर लगभग 5 हजार साल से अधिक पुराना है तथा मंदिर की भित्ति में देवी-देवताओं की प्रतिमा उत्कीर्ण की गई हैं जो उत्कृष्ट कलाकृति का नमूना है। यहां भगवान राजीवलोचन के साथ लक्ष्मी माता, लक्ष्मी नारायण मंदिर, राम मंदिर में राम लक्ष्मण एवं सीता आदि अनेक मंदिर हैं। प्रमुख मंदिरों में भगवान विष्णु का राजीव लोचन मंदिर, शिव का कुलेश्वरनाथ महादेव मंदिर तथा नारी शक्ति को प्रदर्शित करती कमल क्षेत्र की आराध्य देवी मां महामाया विराजमान है।
राजीव लोचन मंदिर- एक किवदंती यह भी है- सतयुग में राजा रत्नाकर नाम का एक राजा था, राजा रत्नाकर ने नीलोत्पला नदी ( महानदी )के तट पर विष्णु का स्मरण कर के कठोर तपस्या करने लगे, भगवान विष्णु प्रसन्न होकर राजा से वर मांगने को कहा, जिसमे रत्नाकर ने एक मंदिर बनाने की इच्छा जताई जिसमे भगवान विष्णु के साक्षात दर्शन हो। इसी इच्छा को पूर्ण कर भगवान विश्वकर्मा ने एक मंदिर की निर्माण की और भगवान विष्णु स्वयं कमल के फूल मे खुद को स्थापित किया और यह नगर कमल क्षेत्र के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
हजारों वर्ष बीत गए पद्मावती पूरी नामक नगर मे राजिम तेलिन नामक एक युवती भगवान विष्णु की परम भक्त थी हर रोज महानदी पर स्नान कर महादेव मंदिर मे जल चढ़ाकर , महानदी तट पर ही मूर्तिविहीन मंदिर मे भगवान विष्णु का स्मरण कर पूजा करती थी। एक दिन राजिम तेलिन को त्रिवेणी मे स्नान कने क दौरान एक काली चिकनी शीला मिला जिसे वह अपने घर ले आई।
वही पद्मावती पूरी के राजा जगतपाल जो भगवान विष्णु के उपासक थे एक दिन रात में भगवान विष्णु ने स्वप्न दिया कि वे राजिम तेलिन के घर जाएँ और वहाँ जो काली शिला रखी है, उससे मेरी आकार दे कर मन्दिर में ले आयें क्योंकि उसी शिला में मैं विद्यमान हूँ । जगतपाल ने भगवान की आज्ञा का पालन करते हुए राजीव लोचन के रूप मे भगवान विष्णु को आकार दिया और मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया। तब से राजिम तेलिन मंदिर मे जाकर तपस्या करने लगी। एक दिन भक्तिन राजिम तेलिन का ध्यान समाधि में बदल गया और उन्हें मोक्ष मिला। तभी से भक्तजन बसंतपंचमी को राजिम भक्तिन माता महोत्सव मनाते हैं।और माता राजिम तेलिन के नाम पर ही नगर का नाम राजिम पड़ा।

2. प्राचीन गजलक्ष्मी की प्रतिमा
नगर के प्रमुख भगवान विष्णु के अवतार राजीव लोचन मंदिर के चारों ओर अनेक देवी-देवताओं की प्रतिमा उत्कीर्ण की गई हैं, इनमें गजलक्ष्मी की एक प्रतिमा है। यह प्रतिमा राजीव लोचन के मंदिर कि सबसे प्राचीन (8 वीं -9 वीं शताब्दी ) है। अभिलेखो के आधार पर इन्हें कृषि और उर्वरता की देवी भी कहा गया है। यह देवी राज्य को समृद्धि प्रदान कराती हैं इसलिए इन्हें राजलक्ष्मी भी कहा गया है। खड़ी मुद्रा में करीब डेढ़ फीट लंबी देवी लक्ष्मी प्रतिमा अपने चार हाथों के साथ सुशोभित हैं। हाथ में प्रकृति (दूरदर्शिता, दृढ़ संकल्प, श्रमशीलता एवं व्यवस्था शक्ति) के प्रतीक हैं।

3. कुलेश्वर महादेव मंदिर
श्री राम अपने 14 वर्ष वनवाश के दौरान छत्तीसहगढ़ के विभिन्न क्षेत्रों मे यात्रा किए थे जिसका प्रमाण आज भी हमे मिलता है। भगवान श्री राम, माता सीता और लक्ष्मण उसी दौरान महानदी के तट पर स्थित लोमेश ऋषि आश्रम मे कुछ समय बिताए थे। माता सीता और श्री राम ने नीलोत्पला (महानदी ) नदी के किनारे एक रेत का शिवलिंग बनाकर भगवान महादेव की आराधना अपनी कुलदेव के रूप मे की थी। माना जाता है की स्वयं विश्वकर्मा द्वारा इस मंदिर का निर्माण किया था।
कुलेश्वर महादेव मंदिर मे दुनिया का पहला पंचमुखी शिवलिंग है इसीलिए भी इस मंदिर का महत्व और भी बढ़ जाता है। आज यह मंदिर राजिम के त्रिवेणी संगम के बीचों बीच स्थित है। 6 वीं शताब्दी मे बना यह कुलेश्वर महादेव मंदिर स्थापत्य का बेजोड़ उदाहरण है। यह प्राचीन मंदिर आज भी मंदिर राजीव लोचन मदिर के परिसर मे ही रामायण कल से ज्यों का त्यो उसी रूप में स्थित है।

4. राजिम कुम्भ मेला
प्रयागराज के कुम्भ मेले के समान राजिम लोचन मंदिर के निकट महानदी पैरी और सोंदुर नदी के संगम पर विशाल मेला का आयोजन किया जाता है। यह प्रतिवर्ष माघ पूर्णिमा से महाशिवरात्रि तक के लिए 15 दिनों तक लगातार लगता है , जो राजिम कुम्भ मेला (पुननी मेला) के नाम से प्रसिद्ध है। इसमे देश भर से लाखों साधु संत और श्रद्धालु समील होते है। राजिम का क्षेत्र पवित्र और विशेष माना गया है और इस कुंभ मेले के दौरान पंचकोशी यात्रा करने का एक अलग महत्व बताया गया है।
इस कुम्भ मेले मे लाखों श्रद्धालु, साधु संत ,नागा साधु, आध्यात्मिक गुरु और धर्मगुरु पैदल इस पंचकोशी यात्रा में पतेश्वर, फिंगेश्वर, ब्रमहनेश्वर, कोपेश्वर और चम्पेश्वर नाथ के दर्शन करते हैं। लगभग 110 किलोमीटर की पैदल यात्रा करके राजिम कुंभ तक पहुंचते हैं। इसके पश्चात वे राजिम स्थित त्रिवेणी संगम पर स्नान कर के प्राचीन कुलेश्वर मंदिर की दर्शन करते है। राजिम कुम्भ मेला छत्तीसगढ़ के सबसे बड़े धार्मिक समगमों मे एक है जिसमे सनातन परंपरा की अद्भुत झलक दिखाई देती है।

राजीव लोचन मंदिर के रहस्य: जहाँ हर रात्रि भगवान विष्णु के विश्राम के लिए तैयार किए जाते है शयन कक्ष
राजीव लोचन मंदिर जितना प्राचीन है उतना ही ही रहस्यों से भरा हुआ है। राजिम मे रहने वाले लोगों और पुजारियों का दावा है की साक्षात स्वयं भगवान विष्णु रात्रि विश्राम करने के लिए मंदिर आते है। यही आस्था और विश्वास के साथ पुजारियों द्वारा हर रात्री भगवान के लिए शयन कक्ष तैयार किया जाता है, साथ ही तेल से भारी कटोरी और भोग भी तैयार किया जाता है।
भगवान विष्णु का रात्रि यह विश्राम करने का प्रमाण अगले दिन सुबह मिलता है जिसमे मंदिर के अंदर बिछाई गई चादर मे आई सिलवटे, तेल से भरी कटोंरी का खाली मिलन व भोग पर साक्षात भगवान क उंगलियों की निशान मिलता है।
इस रहस्य की वास्तविकता की जांच हेतु अनेकों बार लोगों और टीवी चनेल के माध्यम से मंदिर के बाहर पहरा दिया, हर रोज शयन कक्ष तैयार कर गेट पर ताले लगाए जाते है। लेकिन हर बार सुबह भगवान विष्णु की अद्भुत प्रमाण मिलता है। भगवान विष्णु के अनेकों अद्भुत मंदिर है जो भगवान विष्णु की उपस्थति का प्रमाण देते है ,उन्ही मे से एक राजीव लोचन मंदिर अपने रहस्यों को समेटे हुए राजिम मे महानदी के तट पर हजोरों वर्षों स्थित है।
राजीव लोचन मंदिर कैसे पहुँचे?
राजीव लोचन मंदिर, राजधानी रायपुर से केवल 48-50 कि. मी. दूरी मे गरियाबंद जिले मे महानदी तट पर बसा राजिम मे है । जिसे हम केवल 1 से 1.30 घंटे मे bike, car and bus से पहुँच सकते है।

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